Monday, August 7, 2023

विवाह एक संस्कार या मनोरंजन का आयोजन

 मोबाइल -'मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया ' ये है मेरे मोबाइल की काॅलर टोन। देखा कि मेरी चचेरी बहन राधिका का फोन है।आज काफी समय बाद उसका फोन आया है,शुरू में तो एक दूसरे के हालचाल चलते रहे-बच्चे कैसे हैं?कहाँ हैं,कैसे हैं आदि आदि।फिर  आपस के परिवार की शादी-ब्याह की बातें चालू हो गई,  तभी मैंने उस से पूछा- राधिका तुम अपने बेटे की शादी कब कर रही हो ? इतना पूछना था कि बस, वो तो चालू हो गई जैसे कि पहले से तैयार थी कि ये पूछा जाएगा।

कैसी शादी, किसकी शादी । अरे दीदी! अब  तो शादी के नाम से ही डर लगता है।हर  तरफ यही  सुनाई पड़ता है कि उसकी लड़की  की तीन-चार महीने पहले  ही शादी हुई थी और वो घर वापस आ गई है। कहीं सुनाई पड़ता है कि मोहित का बेटा अलग रह रहा है, क्यों! क्योंकि दोनों बहू-बेटे के  विचारों मे  मेल नहीं हो पा रहा।ये तो तब हाल है जब  दो-तीन साल से दोनों में प्यार मोहब्बत चल रहा था।  अब आप ही बताओ दीदी  कैसे इसके बारे में सोचे? इतना सब सुनने के बाद मै भी सोच में पड़ गई कि राधिका की बात मे  दम तो है। आगे ऐसे ही थोड़ी बहुत और बात हुई और हमलोग ने बात को विराम दिया। मैं फिर अपने काम में लग गई। 

  दोपहर में खाना खा कर मैं थोड़ा विश्राम करने पलंग पर लेट गई, पर  लेटे- लेटे बार -बार राधिका की बात घूम रही थी। मैं उसकी बात का विश्लेषण करने लगी।यह सब क्यों हो रहा है? -परिवेश के कारण,  दोनों लड़का-लड़की का कमाना, पाश्चात्य संस्कृति का हावी होना या फिर अभिभावकों की परवरिश में कमी । मुझे लगा कि सभी का असर है। मैं भी आस- पास के माहौल को देख और  समझ रही हूँ। आजकल तो शादी-ब्याह का ढंग ही बदल गया है विवाह एक मनोरंजन का बस साधन मात्र ही रह गया है खूब शान शौकत के साथ हैसियत से ज्यादा खर्च करके हल्दी की रस्म, मेंहदी की रस्म, सामूहिक संगीत और भी न जाने कौन कौन सी रस्म की जाती हैं,लेकिन कुछ खास रस्मों को अनदेखाभी कर दिया जाता है जब की विवाह की रीति-रिवाज में वह खास होती हैं।यही नहीं विवाह करानेआए पंडित से कहा जाता है कि पंडितजी फेरे वगैहरा की रस्में जरा जल्दी निबटा दीजिएगा क्योंकि फिर डी जे भी होना है और देखिए पंडित जी भी अपने  जजमान का इतना ध्यान रखते है कि उनके कहे अनुसार कर देते है।यहाँ यह कहना चाहूंगी कि अभिभावकभी इसमें सहयोग देतें हैं,कारण जो भी हो, बच्चों का डर या बेकार के झंझट से बचना। साथ ही destination marriage (गंतव्य विवाह)का भी चलन खूब है।
  दोनों परिवार एक  जगह साथ रहते हैं और विवाह उत्सव मनातें है और सब ही दोनों के माता-पिता हो या रिश्तेदार खूब  मौज मस्ती से इस उत्सव में अपना योगदान देते हैं,लगता है जैसे पूरे परिवार को सब सुख मिल गया।ये सब बहुत अच्छा भी लगता है,पर चंद दिनों या महिनों  में बच्चे अलग होने की बात करते हैं तो  लगता है कि ये सब क्या है- एक मनोरंजन मात्र है बस ।अपने अभिभावकों के पैसे से मौज मस्ती।विवाह जैसे पवित्र संस्कार का एक मजाक।"विवाह एक अटूट बंधन है" इस परिभाषा को ही खत्म कर दिया है।बच्चे विवाह की गम्भीरता को समझ ही नहीं रहे हैं।वर्तमान की चकाचौंध में वहअपने भविष्य को देख ही नहीं पा रहे हैं।विवाह जैसे पवित्र संस्कार को सरलता से लेके अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।उनको लगता है कि बाकी का जीवन अकेले रहकर  मौज मस्ती के साथ काट लेगे पर ऐसा नहीं है एक  समय ऐसा आता है जब हम अकेले रह जाते हैं, दोस्त भी अपने परिवार में व्यस्त हो जाते है।वो समय ऐसा आता हैकि हम अपने मन की बात साझा करना चाहते है पर कोई नहीं मिलता।मुझे इसका एहसास है,मेरे पति का देहान्त हुए एक वर्ष ही हुआ है।मेरे बच्चे मेरा पूरी तरह ख्याल भी रखते हैं,पर कभी- कभी ऐसा पल भी आता है जब अपने जीवन साथी की कमी  लगती है।यहां इस  संदर्भ को रखने का तात्पर्य यही है कि ये पति- पत्नी का रिश्ता बहुत  खास  होता है,बहुत सी  बातें ऐसी होती हैं जो केवल और केवल पति- पत्नी ही साझां कर  सकते हैं।माता- पिताअगर अपने अनुभवों के आधार पर समझाते हैं तो बच्चे अपने माता- पिता के साथ वाद-विवाद करते हैं और ये एहसास दिला देते हैं कि आपके अनुभव बेकार हैं। ऐसे में कहीं- कहीं माता- पिता  अपनी भावनाओं को अलग कर के बच्चों की खुशी का ध्यान रखकर उनकी पसंद के साथी के साथ उनका विवाह कर देते हैं।आगे चल कर जब विवाह सफल नहीं हो पाता तो बड़ा कष्ट होता हैऔर ये कष्ट मन का ही नहीं, धन का भी होता है। पूरे परिवार के कितने अरमान होते है और सब, कुछ ही पल में धराशाही हो जाते हैं। जब  इस विफलता का कारण खोजा जाता है,तो बस यही उत्तर मिलता है कि तालमेल (adjustment) नहीं हो पा रहा।नतीजा बस अलग होना ।कोई  सलाह मशवरे की गुंजाइश नहीं। लड़की हो या लड़का कोई भी एक  दूसरे को समझने को नहीं तैयार। बस अलग होना ही समाधान है। इतना पवित्र सम्बन्ध एक झटके में खत्म। मनुष्य के जीवन के संस्कारों में ये विवाह संस्कार कितना अहम भूमिका के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराता है, उसकी तो धज्जियाँ उड़ा दी हैं आज के बच्चों ने।सही में बहुत ही गम्भीर और चिंता का विषय है।
यही नहीं इस पवित्र संस्कार को एक  मनोरंजन का साधन बनाकर रख दिया है।
आजकल एक समस्या और उजागर हो रही है,समलैंगिक की।40-50 विवाह-विच्छेद में,एक का कारण यह भी है। ,अगर ऐसा है तो माता- पिता को इसकी जानकारी देना चाहिए जिससे कोई दिक्कत न आए। आजकल तो चाहे समाज ने इसको मान्यता न दी हो,पर कानून ने तो इसकी इजाजत दी है।
यहाँ मेरा मानना ये हैकि अलग होना( तलाक/डाइवोर्स)ही केवल समाधान नहीं हैं क्योंकि कानून भी समय और एक मौका दोनों को आपस में समझने का देता है। ऐसा नहीं है किअलग होने का सोचाऔर कोर्ट ने निर्णय दे दिया।विवाह कोई अनुबंध (contrect) नहीं है कि उसे इस तरह से खारिज कर दिया जाए।अतः इस पवित्र और सुन्दर विवाह संस्कार का सम्मान करें और अपने वैवाहिक जीवन को सुंदर और सफल बनाए।
मेरे उपरोक्त शब्दों को  पढ़कर शायद कुछ  बच्चों की प्रतिक्रिया ये भी हो सकती है- अरे ये सब बेकार की बातें है,पति- पत्नी,जीवन साथी ---।आजकल ये कुछ  माइने नहीं रखता।हम  लड़का -लड़की समान्य  स्तर के हैं, दोनों कमाते हैं।हमारा  अपने जीवन पर पूरा हक है। हमें अपने हिसाब से जीने का अधिकार है।मन होगा तो साथ रहेंगे नहीं तो वो अपने रास्ते, हम अपने रास्ते।
हो सकता है कि उनका सोचना ठीक हो। फिर ये सब उत्सव मना कर अपने अभिभावकों को तन-मन-धन से कष्ट देने की क्या अवश्यकता है।आजकल तो कानून ने स्वैच्छिक सहवास (Live-In-Relationship) को मान्यता दे दी है क्योंकि  कानून तो सर्वोपरि हो गया है,तो उसमें रहोऔर अपने जीवन को खुशहाल बनाओ। ऐसा लिखने में कष्ट हो रहा है क्योंकि हम उस परिवेश में नहीं पल कर  बड़े हुए हैं।लेकिन जैसा आजकल  माहौल है उसमें लिखना पड़ रहा है।
अंत में, मैं बस यही कहना चाहूंगी कि बच्चों मै आपकी दुश्मन  नहीं हूं,आप अपने मन की करने से पहले अपने अंतर्मन में जरूर झांककर देखें और उचित निर्णय लें।
      "मैं जिन्दगी का साथ  निभाता चला गया
     हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।"
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