Surachna
Monday, August 7, 2023
विवाह एक संस्कार या मनोरंजन का आयोजन
कैसी शादी, किसकी शादी । अरे दीदी! अब तो शादी के नाम से ही डर लगता है।हर तरफ यही सुनाई पड़ता है कि उसकी लड़की की तीन-चार महीने पहले ही शादी हुई थी और वो घर वापस आ गई है। कहीं सुनाई पड़ता है कि मोहित का बेटा अलग रह रहा है, क्यों! क्योंकि दोनों बहू-बेटे के विचारों मे मेल नहीं हो पा रहा।ये तो तब हाल है जब दो-तीन साल से दोनों में प्यार मोहब्बत चल रहा था। अब आप ही बताओ दीदी कैसे इसके बारे में सोचे? इतना सब सुनने के बाद मै भी सोच में पड़ गई कि राधिका की बात मे दम तो है। आगे ऐसे ही थोड़ी बहुत और बात हुई और हमलोग ने बात को विराम दिया। मैं फिर अपने काम में लग गई।
दोपहर में खाना खा कर मैं थोड़ा विश्राम करने पलंग पर लेट गई, पर लेटे- लेटे बार -बार राधिका की बात घूम रही थी। मैं उसकी बात का विश्लेषण करने लगी।यह सब क्यों हो रहा है? -परिवेश के कारण, दोनों लड़का-लड़की का कमाना, पाश्चात्य संस्कृति का हावी होना या फिर अभिभावकों की परवरिश में कमी । मुझे लगा कि सभी का असर है। मैं भी आस- पास के माहौल को देख और समझ रही हूँ। आजकल तो शादी-ब्याह का ढंग ही बदल गया है विवाह एक मनोरंजन का बस साधन मात्र ही रह गया है खूब शान शौकत के साथ हैसियत से ज्यादा खर्च करके हल्दी की रस्म, मेंहदी की रस्म, सामूहिक संगीत और भी न जाने कौन कौन सी रस्म की जाती हैं,लेकिन कुछ खास रस्मों को अनदेखाभी कर दिया जाता है जब की विवाह की रीति-रिवाज में वह खास होती हैं।यही नहीं विवाह करानेआए पंडित से कहा जाता है कि पंडितजी फेरे वगैहरा की रस्में जरा जल्दी निबटा दीजिएगा क्योंकि फिर डी जे भी होना है और देखिए पंडित जी भी अपने जजमान का इतना ध्यान रखते है कि उनके कहे अनुसार कर देते है।यहाँ यह कहना चाहूंगी कि अभिभावकभी इसमें सहयोग देतें हैं,कारण जो भी हो, बच्चों का डर या बेकार के झंझट से बचना। साथ ही destination marriage (गंतव्य विवाह)का भी चलन खूब है।
दोनों परिवार एक जगह साथ रहते हैं और विवाह उत्सव मनातें है और सब ही दोनों के माता-पिता हो या रिश्तेदार खूब मौज मस्ती से इस उत्सव में अपना योगदान देते हैं,लगता है जैसे पूरे परिवार को सब सुख मिल गया।ये सब बहुत अच्छा भी लगता है,पर चंद दिनों या महिनों में बच्चे अलग होने की बात करते हैं तो लगता है कि ये सब क्या है- एक मनोरंजन मात्र है बस ।अपने अभिभावकों के पैसे से मौज मस्ती।विवाह जैसे पवित्र संस्कार का एक मजाक।"विवाह एक अटूट बंधन है" इस परिभाषा को ही खत्म कर दिया है।बच्चे विवाह की गम्भीरता को समझ ही नहीं रहे हैं।वर्तमान की चकाचौंध में वहअपने भविष्य को देख ही नहीं पा रहे हैं।विवाह जैसे पवित्र संस्कार को सरलता से लेके अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।उनको लगता है कि बाकी का जीवन अकेले रहकर मौज मस्ती के साथ काट लेगे पर ऐसा नहीं है एक समय ऐसा आता है जब हम अकेले रह जाते हैं, दोस्त भी अपने परिवार में व्यस्त हो जाते है।वो समय ऐसा आता हैकि हम अपने मन की बात साझा करना चाहते है पर कोई नहीं मिलता।मुझे इसका एहसास है,मेरे पति का देहान्त हुए एक वर्ष ही हुआ है।मेरे बच्चे मेरा पूरी तरह ख्याल भी रखते हैं,पर कभी- कभी ऐसा पल भी आता है जब अपने जीवन साथी की कमी लगती है।यहां इस संदर्भ को रखने का तात्पर्य यही है कि ये पति- पत्नी का रिश्ता बहुत खास होता है,बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो केवल और केवल पति- पत्नी ही साझां कर सकते हैं।माता- पिताअगर अपने अनुभवों के आधार पर समझाते हैं तो बच्चे अपने माता- पिता के साथ वाद-विवाद करते हैं और ये एहसास दिला देते हैं कि आपके अनुभव बेकार हैं। ऐसे में कहीं- कहीं माता- पिता अपनी भावनाओं को अलग कर के बच्चों की खुशी का ध्यान रखकर उनकी पसंद के साथी के साथ उनका विवाह कर देते हैं।आगे चल कर जब विवाह सफल नहीं हो पाता तो बड़ा कष्ट होता हैऔर ये कष्ट मन का ही नहीं, धन का भी होता है। पूरे परिवार के कितने अरमान होते है और सब, कुछ ही पल में धराशाही हो जाते हैं। जब इस विफलता का कारण खोजा जाता है,तो बस यही उत्तर मिलता है कि तालमेल (adjustment) नहीं हो पा रहा।नतीजा बस अलग होना ।कोई सलाह मशवरे की गुंजाइश नहीं। लड़की हो या लड़का कोई भी एक दूसरे को समझने को नहीं तैयार। बस अलग होना ही समाधान है। इतना पवित्र सम्बन्ध एक झटके में खत्म। मनुष्य के जीवन के संस्कारों में ये विवाह संस्कार कितना अहम भूमिका के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराता है, उसकी तो धज्जियाँ उड़ा दी हैं आज के बच्चों ने।सही में बहुत ही गम्भीर और चिंता का विषय है।
यही नहीं इस पवित्र संस्कार को एक मनोरंजन का साधन बनाकर रख दिया है।
आजकल एक समस्या और उजागर हो रही है,समलैंगिक की।40-50 विवाह-विच्छेद में,एक का कारण यह भी है। ,अगर ऐसा है तो माता- पिता को इसकी जानकारी देना चाहिए जिससे कोई दिक्कत न आए। आजकल तो चाहे समाज ने इसको मान्यता न दी हो,पर कानून ने तो इसकी इजाजत दी है।
यहाँ मेरा मानना ये हैकि अलग होना( तलाक/डाइवोर्स)ही केवल समाधान नहीं हैं क्योंकि कानून भी समय और एक मौका दोनों को आपस में समझने का देता है। ऐसा नहीं है किअलग होने का सोचाऔर कोर्ट ने निर्णय दे दिया।विवाह कोई अनुबंध (contrect) नहीं है कि उसे इस तरह से खारिज कर दिया जाए।अतः इस पवित्र और सुन्दर विवाह संस्कार का सम्मान करें और अपने वैवाहिक जीवन को सुंदर और सफल बनाए।
मेरे उपरोक्त शब्दों को पढ़कर शायद कुछ बच्चों की प्रतिक्रिया ये भी हो सकती है- अरे ये सब बेकार की बातें है,पति- पत्नी,जीवन साथी ---।आजकल ये कुछ माइने नहीं रखता।हम लड़का -लड़की समान्य स्तर के हैं, दोनों कमाते हैं।हमारा अपने जीवन पर पूरा हक है। हमें अपने हिसाब से जीने का अधिकार है।मन होगा तो साथ रहेंगे नहीं तो वो अपने रास्ते, हम अपने रास्ते।
हो सकता है कि उनका सोचना ठीक हो। फिर ये सब उत्सव मना कर अपने अभिभावकों को तन-मन-धन से कष्ट देने की क्या अवश्यकता है।आजकल तो कानून ने स्वैच्छिक सहवास (Live-In-Relationship) को मान्यता दे दी है क्योंकि कानून तो सर्वोपरि हो गया है,तो उसमें रहोऔर अपने जीवन को खुशहाल बनाओ। ऐसा लिखने में कष्ट हो रहा है क्योंकि हम उस परिवेश में नहीं पल कर बड़े हुए हैं।लेकिन जैसा आजकल माहौल है उसमें लिखना पड़ रहा है।
अंत में, मैं बस यही कहना चाहूंगी कि बच्चों मै आपकी दुश्मन नहीं हूं,आप अपने मन की करने से पहले अपने अंतर्मन में जरूर झांककर देखें और उचित निर्णय लें।
"मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।"
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Sunday, October 18, 2015
नारायण बने करोड़पति
अरे !ये तो नारद जी की आवाज है। आओ ॠषिवर क्या समाचार है पृथ्वी लोक के।
नारद - प्रणाम भगवन ! पृथ्वी लोक में तो मनुष्य का जीवन भाग रहा है किसी को भी किसी की परवाह नही है सब अपना- अपना देख रहे है।
विष्णु भगवान - अच्छा, मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है । ये तो अच्छी बात नही है, वैसे यहां भी यही हाल चल रहा है। मैं बहुत परेशान हूँ देवताओं के मारे।
नारद - ऐसा देवताओं ने क्या कर दिया कि आप परेशानहैं।
विष्णु भगवान - नारद, यार ये बताओ पृथ्वी लोक में कोई बिग बी है जो पूरी पृथ्वी में प्रसिद्ध है।
नारद- अरे ! भगवन आपको उसके बारे में नही पता ।अरे, आपने ही तो उसे आशीर्वाद दिया था कि जाओ और अपनी कला से पृथ्वी पर सबका मन मोह लो।
भगवान - हां! कुछ याद आ तो रहा है उसका नाम........... नारद - अमिताभ बच्चन जिसकी पत्नी जया बच्चन और भगवन् उसके लड़के की बहु विश्वसुन्दरी ऐश्वर्या राय बच्चन है।
भगवान -(लम्बी साँस लेते हुए) हां..........याद आ गया,अरे इसी बिग बी , अरे अमिताभ की वजह से यहां देवताओं ने आतंक मचाया हुआ है। कोई ’शहंशाह'के डायलाग बोलता है तो कोई 'अग्निपथ' के अभी कल ही एक देव आकर बोले कि वह कुछ दिनों के लिए दरबार में नही आयेगें पता चला कि वो पृथ्वी लोक जा रहे है। मैंने पूछा तो उन्होनें ने मेरी बात अनसुनी कर दी।
(नारद चले जाते हैं)
विष्णु भगवान - देवी मैं ये क्या देख रहा हूँ, आप तो पृथ्वी लोक जैसी लग रही है। ये आपने क्या हाल बना रखा है?(लक्ष्मी जी अभिमान की जया बच्चन लग रही थीं और पिया बिना ,पिया बिना लागे ना.... गाते हुए )भगवान को नमन करती हैं और पूछती हैं भगवन मैं जया के रूप में कैसी लग रही हूँ आपको पता है उनके पति बिग बी हैं। मैं उनकी फैन हूँ और गाना शुरू कर देती हैं - नदिया किनारे हिराए आई कंगना ...
Friday, October 16, 2015
Sunday, November 23, 2014
Education (कव्वाली)
जब हम छोटे बच्चे थे,
घर में ही ये प्रारंभ हुआ,
मम्मी बोली A से एपल,
पापा ने B से बॉल कहा,
चाची भी चुप नहीं बैठी ,
उन्होंने C का ज्ञान दिया,
बोली C से होती बिल्ली,
Dसे Donkey का ज्ञान हुआ
इस A B C D के चक्कर में,
सुनहरा बचपन बीत गयाl
ये आजकल की ...........l
तीन बरस के होते ही,
विद्यालय को प्रस्थान किया,
और वहाँ क्या था ?
अनुशासन ही अनुशासन था ,
आगे पीछे अनुशासन था,
मम्मी भी चुप नहीं बैठी,
घर में अनुशासन लगा दिया ,
फिर क्या था ?
स्कूल में अनुशासन था,
घर में भी अनुशासन था,
इस अनुशासन के चक्कर में
जीना हमको दुशवार हुआ
ये आजकल की ..........l
पढ़ते -लिखते,लिखते- पढ़ते,
खेलों को हमने त्याग दिया,
और क्या किया ?
मास्टर जी के घर में जाकर
विज्ञान का Lesson याद कियाl
हिन्दी, इंग्लिश, इतिहास ,गणित,
विज्ञान ने बस्ता जाम किया
भारी किताबें पढ़-पढ़कर
आँखों पे चश्मा सजा लिया
ये आजकल की ...….......l
दिल खोल के सारा हमने अपना
आपके सामने रख दिया,
जो-जो हमने अबतक झेला
वो सारा हमने बता दिया l
हे!बच्चों के अभिभावक गण
तुम ही अब कुछ उद्धार करो
खेलें कूदे देखें TV
और साथ में लैपटौप पास रहेl
करते विनती तुमसे इतनी
थोड़ी-सी help किया करो,
जब स्कूल से होमवर्क मिले
उसको घर में कर दिया करो l
ये आजकल की एजुकेशन ने जीना दुशवार किया l
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Tuesday, November 11, 2014
Nursery Rhymes For My Granddaughter Saanvi
चिड़िया - चीं चीं चीं चीं चिड़िया बोली चीं चीं ,
फुर्र से वो उड़ जाती ढ़ूँढ़ के दाना लाती l
मेरे बच्चों प्यारे बच्चों , देखो में क्या लाई ,
भूख लगी है बड़ी जोर से झटपट खाना खा लो l
चीं चीं ..…................................l
Black Sheep- Baa Baa Black sheep
How are you ?
Can you give me,
Soft- soft wool.
With the soft- soft wool,
Mammy makes me suit .
That I will wear ,
In my school .
Baa Baa Black Sheep
How are you ?
गुड़िया - मेरी गुड़िया गोल - मटोल
खाती हरदम रोटी गोल,
लड्डू पेड़ा मुझे खिलाती ,
दूध मलाई खुद खा जाती l
लोरी- दादी लोरी सुना दो मुझको , नींद नहीं आती है l
मीठे- मीठे सपने बुनने को, ठपकी देदो तुम दादी l
चाँद- सितारों पर जाकर मैं, परियों से मिलकर आऊँ l
प्यारे- प्यारे खेल खिलौनें , सारे उनसे ले आऊँ ll
पायल- मेरी पायल बोल रही है, छम-छम-छम-छम-छम-छम-छम l
ढोलक ताल मिला रही है , ढम-ढम-ढम-ढम-ढम-ढम-ढम l
मम्मी आकर पूछ रही हैं, ये क्या है छम-छम-छम-छम l
मैं बोली मैं नाच रही हूँ , छम- छमा- छम, छम-छम-छम l
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Monday, November 10, 2014
चौराहे की प्रतिमाएँ
पाठक गण इस लेख को पढ़कर यह अवश्य सोचेगें कि मैंने यह शीर्षक ही क्यों चुना? पहले मैं भी उन प्रतिमाओं को साधारण दृष्टिकोण से ही देखती थी,किन्तु जब मैंने उन प्रतिमाओं की दुर्दशा की कल्पना व अनुभूति की तो लगा कि यह कोई साधारण विषय नहीं है l 'प्रतिमा' हम किसी को स्मरण करने के लिए स्थापित करते हैं l जिससे की आगे की पीढ़ी भी उस व्यक्ति को जान ले कि यह प्रतिमा जरूर किसी महान् पुरुष की है, क्योंकि हमलोग किसी साधारण व्यक्ति की प्रतिमा चौराहे पर नहीं लगाते l भगवान की प्रतिमा को भी हमलोग स्मरण करने के लिए मंदिर में स्थापित करते हैंl परन्तु आजतक मुझे यह बात समझ में नही आई कि यह प्रतिमाएं चौराहे पर ही क्यों स्थापित की जाती हैं क्या उनके लिए कोई और स्थान उचित नहीं हैl पर हाँ अभी किसी - किसी शहर में पार्क में,झीले के बीच या फिर किसी पहाड़ पर उन्हें स्थान मिला है l
यदि हम गौर करें तो पाते हैं कि प्रतिमा की स्थापना के दिन तो उस मूर्ति को पूर्ण रूप से सुसज्जित कराया जाता है , पर बाद में तो उस पर चाहे धूल पड़े, चाहे पानी,चाहे पक्षी बीट कर जाएँ , कोई पोंछने तक नही आता l प्रत्येक आदमी जो उस मार्ग से गुजरता है, देखता जरूर है पर उसकी सफाई कोई नहीं करता क्योंकि यह काम तो उनलोगों का है जिन्होंने स्थापना कराई है, और वही देखभाल भी करेगें l देखभाल पर ध्यान आया कि वह देखभाल अवश्य करते हैं, पर तब जब उस महान् व्यक्ति की जन्मतिथि हो या फिर पुण्यतिथि l उसके बाद किसी की जिम्मेदारी नहीं है कि उनकी देखभाल करें l
यदि मैं प्रतिमा को स्थापित करने वालों के स्थान पर होती तो उनके लिए एक उचित स्थान व छत्रछाया का प्रबन्ध जरूर करती l अगर ऐसा नहीं कर पाती तो प्रतिमा को स्थापित करने के बारे में कभी नहीं सोचती l
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Tuesday, October 28, 2014
Passing the Parcel
So start the game ' Passing the parcel' for fun only and enjoy your life.