Monday, August 7, 2023

विवाह एक संस्कार या मनोरंजन का आयोजन

 मोबाइल -'मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया ' ये है मेरे मोबाइल की काॅलर टोन। देखा कि मेरी चचेरी बहन राधिका का फोन है।आज काफी समय बाद उसका फोन आया है,शुरू में तो एक दूसरे के हालचाल चलते रहे-बच्चे कैसे हैं?कहाँ हैं,कैसे हैं आदि आदि।फिर  आपस के परिवार की शादी-ब्याह की बातें चालू हो गई,  तभी मैंने उस से पूछा- राधिका तुम अपने बेटे की शादी कब कर रही हो ? इतना पूछना था कि बस, वो तो चालू हो गई जैसे कि पहले से तैयार थी कि ये पूछा जाएगा।

कैसी शादी, किसकी शादी । अरे दीदी! अब  तो शादी के नाम से ही डर लगता है।हर  तरफ यही  सुनाई पड़ता है कि उसकी लड़की  की तीन-चार महीने पहले  ही शादी हुई थी और वो घर वापस आ गई है। कहीं सुनाई पड़ता है कि मोहित का बेटा अलग रह रहा है, क्यों! क्योंकि दोनों बहू-बेटे के  विचारों मे  मेल नहीं हो पा रहा।ये तो तब हाल है जब  दो-तीन साल से दोनों में प्यार मोहब्बत चल रहा था।  अब आप ही बताओ दीदी  कैसे इसके बारे में सोचे? इतना सब सुनने के बाद मै भी सोच में पड़ गई कि राधिका की बात मे  दम तो है। आगे ऐसे ही थोड़ी बहुत और बात हुई और हमलोग ने बात को विराम दिया। मैं फिर अपने काम में लग गई। 

  दोपहर में खाना खा कर मैं थोड़ा विश्राम करने पलंग पर लेट गई, पर  लेटे- लेटे बार -बार राधिका की बात घूम रही थी। मैं उसकी बात का विश्लेषण करने लगी।यह सब क्यों हो रहा है? -परिवेश के कारण,  दोनों लड़का-लड़की का कमाना, पाश्चात्य संस्कृति का हावी होना या फिर अभिभावकों की परवरिश में कमी । मुझे लगा कि सभी का असर है। मैं भी आस- पास के माहौल को देख और  समझ रही हूँ। आजकल तो शादी-ब्याह का ढंग ही बदल गया है विवाह एक मनोरंजन का बस साधन मात्र ही रह गया है खूब शान शौकत के साथ हैसियत से ज्यादा खर्च करके हल्दी की रस्म, मेंहदी की रस्म, सामूहिक संगीत और भी न जाने कौन कौन सी रस्म की जाती हैं,लेकिन कुछ खास रस्मों को अनदेखाभी कर दिया जाता है जब की विवाह की रीति-रिवाज में वह खास होती हैं।यही नहीं विवाह करानेआए पंडित से कहा जाता है कि पंडितजी फेरे वगैहरा की रस्में जरा जल्दी निबटा दीजिएगा क्योंकि फिर डी जे भी होना है और देखिए पंडित जी भी अपने  जजमान का इतना ध्यान रखते है कि उनके कहे अनुसार कर देते है।यहाँ यह कहना चाहूंगी कि अभिभावकभी इसमें सहयोग देतें हैं,कारण जो भी हो, बच्चों का डर या बेकार के झंझट से बचना। साथ ही destination marriage (गंतव्य विवाह)का भी चलन खूब है।
  दोनों परिवार एक  जगह साथ रहते हैं और विवाह उत्सव मनातें है और सब ही दोनों के माता-पिता हो या रिश्तेदार खूब  मौज मस्ती से इस उत्सव में अपना योगदान देते हैं,लगता है जैसे पूरे परिवार को सब सुख मिल गया।ये सब बहुत अच्छा भी लगता है,पर चंद दिनों या महिनों  में बच्चे अलग होने की बात करते हैं तो  लगता है कि ये सब क्या है- एक मनोरंजन मात्र है बस ।अपने अभिभावकों के पैसे से मौज मस्ती।विवाह जैसे पवित्र संस्कार का एक मजाक।"विवाह एक अटूट बंधन है" इस परिभाषा को ही खत्म कर दिया है।बच्चे विवाह की गम्भीरता को समझ ही नहीं रहे हैं।वर्तमान की चकाचौंध में वहअपने भविष्य को देख ही नहीं पा रहे हैं।विवाह जैसे पवित्र संस्कार को सरलता से लेके अपने जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।उनको लगता है कि बाकी का जीवन अकेले रहकर  मौज मस्ती के साथ काट लेगे पर ऐसा नहीं है एक  समय ऐसा आता है जब हम अकेले रह जाते हैं, दोस्त भी अपने परिवार में व्यस्त हो जाते है।वो समय ऐसा आता हैकि हम अपने मन की बात साझा करना चाहते है पर कोई नहीं मिलता।मुझे इसका एहसास है,मेरे पति का देहान्त हुए एक वर्ष ही हुआ है।मेरे बच्चे मेरा पूरी तरह ख्याल भी रखते हैं,पर कभी- कभी ऐसा पल भी आता है जब अपने जीवन साथी की कमी  लगती है।यहां इस  संदर्भ को रखने का तात्पर्य यही है कि ये पति- पत्नी का रिश्ता बहुत  खास  होता है,बहुत सी  बातें ऐसी होती हैं जो केवल और केवल पति- पत्नी ही साझां कर  सकते हैं।माता- पिताअगर अपने अनुभवों के आधार पर समझाते हैं तो बच्चे अपने माता- पिता के साथ वाद-विवाद करते हैं और ये एहसास दिला देते हैं कि आपके अनुभव बेकार हैं। ऐसे में कहीं- कहीं माता- पिता  अपनी भावनाओं को अलग कर के बच्चों की खुशी का ध्यान रखकर उनकी पसंद के साथी के साथ उनका विवाह कर देते हैं।आगे चल कर जब विवाह सफल नहीं हो पाता तो बड़ा कष्ट होता हैऔर ये कष्ट मन का ही नहीं, धन का भी होता है। पूरे परिवार के कितने अरमान होते है और सब, कुछ ही पल में धराशाही हो जाते हैं। जब  इस विफलता का कारण खोजा जाता है,तो बस यही उत्तर मिलता है कि तालमेल (adjustment) नहीं हो पा रहा।नतीजा बस अलग होना ।कोई  सलाह मशवरे की गुंजाइश नहीं। लड़की हो या लड़का कोई भी एक  दूसरे को समझने को नहीं तैयार। बस अलग होना ही समाधान है। इतना पवित्र सम्बन्ध एक झटके में खत्म। मनुष्य के जीवन के संस्कारों में ये विवाह संस्कार कितना अहम भूमिका के साथ गृहस्थ जीवन में प्रवेश कराता है, उसकी तो धज्जियाँ उड़ा दी हैं आज के बच्चों ने।सही में बहुत ही गम्भीर और चिंता का विषय है।
यही नहीं इस पवित्र संस्कार को एक  मनोरंजन का साधन बनाकर रख दिया है।
आजकल एक समस्या और उजागर हो रही है,समलैंगिक की।40-50 विवाह-विच्छेद में,एक का कारण यह भी है। ,अगर ऐसा है तो माता- पिता को इसकी जानकारी देना चाहिए जिससे कोई दिक्कत न आए। आजकल तो चाहे समाज ने इसको मान्यता न दी हो,पर कानून ने तो इसकी इजाजत दी है।
यहाँ मेरा मानना ये हैकि अलग होना( तलाक/डाइवोर्स)ही केवल समाधान नहीं हैं क्योंकि कानून भी समय और एक मौका दोनों को आपस में समझने का देता है। ऐसा नहीं है किअलग होने का सोचाऔर कोर्ट ने निर्णय दे दिया।विवाह कोई अनुबंध (contrect) नहीं है कि उसे इस तरह से खारिज कर दिया जाए।अतः इस पवित्र और सुन्दर विवाह संस्कार का सम्मान करें और अपने वैवाहिक जीवन को सुंदर और सफल बनाए।
मेरे उपरोक्त शब्दों को  पढ़कर शायद कुछ  बच्चों की प्रतिक्रिया ये भी हो सकती है- अरे ये सब बेकार की बातें है,पति- पत्नी,जीवन साथी ---।आजकल ये कुछ  माइने नहीं रखता।हम  लड़का -लड़की समान्य  स्तर के हैं, दोनों कमाते हैं।हमारा  अपने जीवन पर पूरा हक है। हमें अपने हिसाब से जीने का अधिकार है।मन होगा तो साथ रहेंगे नहीं तो वो अपने रास्ते, हम अपने रास्ते।
हो सकता है कि उनका सोचना ठीक हो। फिर ये सब उत्सव मना कर अपने अभिभावकों को तन-मन-धन से कष्ट देने की क्या अवश्यकता है।आजकल तो कानून ने स्वैच्छिक सहवास (Live-In-Relationship) को मान्यता दे दी है क्योंकि  कानून तो सर्वोपरि हो गया है,तो उसमें रहोऔर अपने जीवन को खुशहाल बनाओ। ऐसा लिखने में कष्ट हो रहा है क्योंकि हम उस परिवेश में नहीं पल कर  बड़े हुए हैं।लेकिन जैसा आजकल  माहौल है उसमें लिखना पड़ रहा है।
अंत में, मैं बस यही कहना चाहूंगी कि बच्चों मै आपकी दुश्मन  नहीं हूं,आप अपने मन की करने से पहले अपने अंतर्मन में जरूर झांककर देखें और उचित निर्णय लें।
      "मैं जिन्दगी का साथ  निभाता चला गया
     हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।"
                   ************


Sunday, October 18, 2015

नारायण बने करोड़पति


भगवन ! भगवन !
अरे !ये तो नारद जी की आवाज है। आओ ॠषिवर क्या समाचार है पृथ्वी लोक के।
नारद - प्रणाम भगवन ! पृथ्वी लोक में तो मनुष्य का जीवन भाग रहा है किसी को भी किसी की परवाह नही है सब अपना- अपना देख रहे है।
विष्णु भगवान - अच्छा, मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है । ये तो अच्छी बात नही है, वैसे यहां भी यही हाल चल रहा है। मैं बहुत परेशान हूँ देवताओं के मारे।
नारद - ऐसा देवताओं ने क्या कर दिया  कि आप परेशानहैं।
 विष्णु भगवान - नारद, यार ये बताओ पृथ्वी लोक में कोई बिग बी है जो पूरी पृथ्वी में प्रसिद्ध है।
नारद- अरे ! भगवन आपको उसके बारे में नही पता ।अरे,  आपने ही तो उसे आशीर्वाद दिया था कि जाओ और अपनी कला से पृथ्वी पर सबका मन मोह लो।
भगवान - हां! कुछ याद आ तो रहा है उसका नाम........... नारद - अमिताभ बच्चन जिसकी पत्नी जया बच्चन और भगवन् उसके लड़के की बहु विश्वसुन्दरी ऐश्वर्या राय बच्चन है।
भगवान -(लम्बी साँस लेते हुए) हां..........याद आ गया,अरे इसी बिग बी , अरे अमिताभ की वजह से यहां देवताओं ने आतंक मचाया हुआ है। कोई ’शहंशाह'के  डायलाग बोलता है तो कोई 'अग्निपथ' के अभी कल ही एक देव आकर बोले कि वह कुछ दिनों के लिए दरबार में नही आयेगें पता चला कि वो पृथ्वी लोक जा रहे है।  मैंने पूछा तो उन्होनें ने मेरी बात अनसुनी कर दी।
  नारद- ऐसा है भगवन मैं पता लगाता हूँ, कि वे पृथ्वी लोक क्यों जा रहे है।  विष्णु भगवान - नारद पता करो और हां मुझे  इस अमिताभ के बारे में बताओं ।नारद- आज्ञा भगवन् !
(नारद चले जाते हैं)
  तभी लक्ष्मी जी का प्रवेश होता है । भगवान उनको देखकर मूर्छित मुद्रा में आते- आते सम्भल जाते हैं।
विष्णु भगवान - देवी मैं ये क्या देख रहा हूँ, आप तो पृथ्वी लोक जैसी लग रही है। ये आपने क्या हाल बना रखा है?(लक्ष्मी जी अभिमान की जया बच्चन लग रही थीं और पिया बिना ,पिया बिना लागे ना.... गाते हुए )भगवान को नमन करती हैं और पूछती हैं भगवन मैं जया के रूप में कैसी लग रही हूँ आपको पता है उनके  पति बिग बी हैं। मैं उनकी फैन हूँ और गाना शुरू कर देती हैं - नदिया किनारे हिराए आई कंगना ...
विष्णु भगवान -(सिर पकड़ कर बैठ जाते हैं और सोचते हैं ) अभी तक ये पागलपन ‘देवताओं में ही था आज भाग्यवान को भी यह रंग चढ़ गया है ऐसा क्या उन बिग बी में है जो मुझ में नही है।  अचानक उनका ध्यान टूटता है और देखते है कि लक्ष्मी उनको अमित- अमित कहकर जगा रही हैं ।   
विष्णु भगवान - भाई ये अमित- अमित कहकर मुझे क्यों जगा रही हैं। मेरा नाम अमित नही है भाग्यवान आपको क्या हो गया है अभी तक मैं देवताओं से ही परेशान थाऔर आज आपने भी वही स्वर शुरू कर दिया ।लगता है अब मुझे कुछ करना  पडे़गा । लक्ष्मी जी उसी तरह गाते हुए अपने कक्ष में चली जाती हैं ।

भगवान विष्णु  देव लोक में भ्रमण  के लिए निकलते हैें तो हैरान हो जाते हैं हर कोई बिग बी से प्रभावित है। उनपर कोई ध्यान ही नही दे रहा है। निराश होकर वह दरबार में आ जाते हैं । उनको भी चैन नही आ रहा है। सिंहासन डोलता हुआ दिख रहा था ।तभी नारद मुनि का प्रवेश होता है।  विष्णुजी को इस हालत में देखकर कहते है,  भगवन, आप चिंतित लग रहे हैं । मैंने उस देव का पता लगा लिया है वह पृथ्वी लोक 'कौन बनेगा करोड़ पति' में हिस्सा लेने जा रहा है। अभी कुछ दिनों पहले उसकी लाइन खुली थीं और उसमें उन्होंने गुप्त रूप से उत्तर भेज कर अपना नाम उसमें भाग लेने के लिए पा लिया है परसों उनका ओडिशन है उसमें सेलेक्ट होने पर वह अमिताभ बच्चन के सामने हॅाटसीट पर बैठकर प्रश्नों के उत्तर देगें। भगवन ऐसा सुअवसर हर किसी को नही मिलता मैं भी कई वर्षों से कोशिश कर रहा हूँ पर मेरा नम्बर नहीआया । 
भगवन  आपने कभी इसके लिए कोशिश की।  विष्णु भगवान - (अचानक ध्यान देते हुए)नहीं-- पर लगता हैे यहां की हालत देते हुए कुछ करना पड़ेगा। सभी पर उसका भूत सवार है । ऐसा उसमें क्या है जो मुझमें नही। मैं भी उससे मिलना चाहता हूँ। कुछ तो करना पड़ेगा।
 नारद- मीत ना मिला रहे मन का ............ 
विष्णु भगवान - ॠषिवर! आप भी ............ क्या होगा ? 

एक- दो दिन बाद

 विष्णु भगवान - (दरबार में) देव ॠषि को बुलाया जाए ।
तुरन्त नारायण ! नारायण करते हुए नारद मुनि उपस्थित हुए और कहा - आज्ञा भगवन !  
विष्णु भगवान - आज्ञा भगवन ये क्या ? कुछ पता किया ? 
नारद - किस बारे में ? विष्णु भगवान - (बेचैन) अरे पृथ्वी लोक .............बिग बी ............
...  
नारद - अच्छा- अच्छा उस देव का तो सिलेक्सन तो हो गया वह आडिशन में पास हो गया ।  अब तो  वहां निमंत्रण पाने की राह देख रहे है। (थोड़ा रूक कर ) बड़ा किस्मत वाला है मुझे पता नही कब मौका मिलेगा।
 विष्णु भगवान - ॠषिवर मेरा क्या किया मुझे भी वहां जाना है ।  
नारद - आपको .........नारायण- नारायण । (मन में तब तो मेरा भी जुगाड़ हो जायेगा)
भगवन आपके लिए तो कोई परेशानी नही है। वी0आई0पी इन्टरी हो जायेगी। भगवन् आप मोबाइल किस कम्पनी का प्रयोग करते हैं।
  विष्णु भगवान - मोबाइल! मोबाइल! किस कम्पनी का।  क्या मतलब ? नारद -नहीं भगवन, कम्पनी से बड़ा फायदा होता है। जो कम्पनी स्पोन्सर करती है उससे डाइरेक्ट इन्टरी मिल जाती है।  
विष्णु भगवान -उसकी चिन्ता मत करो । जिस कम्पनी का चाहो ले लेना।अरे भाई हम सुप्रीमो हैं।
नारद जी-(सिर हिलाकर)सही भगवन।
 भगवान- लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि उस देव से पहले मैं वहां पहुँचू ।
 नारद - भगवन् आप तो अपने देव को निराश कर देगे।
 विष्णु भगवान -  मै कुछ नहीं जानता ऐसी ही व्यवस्था की जाए। नारद - जो आज्ञा भगवन् लेकिन भगवन् आप इस रूप में वहां कैसे जा सकते है। उसका उपाय आपने सोचा है। 
 विष्णु भगवान -  यह काम नारद जी आपका है आप सोचकर उसी हिसाब से तैयारी करें।       नारद  - जो आज्ञा भगवन !(और नारायण-2 करते चले जाते हैं ।)

(यह सब लक्ष्मी जी चुपचाप सुन रही थी) नारद के जाते ही लक्ष्मी जी- स्वामी आप अकेले कैसे जा सकते हैं मैं भी चलूँगी मुझे भी उससे मिलना है।  

विष्णु भगवान -  अब  ये क्या मुसीबत लग गयी। भाग्यवान आप पृथ्वी लोक कैसे जा सकती हैं। आपको तो यही बैंकुण्ठ धाम में रहना है वहां आपको बहुत दिक्कत हो जायेगी। मै ही वहां अकेला जाऊँगा और आप इसके लिए जिदद् नहीं करेगीं ,मेरी आज्ञा को मानेंगी। लक्ष्मी कुछ सोचते हुए अपने कक्ष में चली जाती हैं। 
 विष्णु भगवान - (शयनकक्ष में )आराम करते हुए स्वप्न लोक में चले जाते हैं ।  
(स्वप्न में वह बहुत बेचैन रहते है नींद नहीं आ रही सामने हॉट सीट ही दिख रही है )तभी अचानक नारायण - नारायण की आवाज सुनकर उठ जाते है। देखते है कि सामने नारद जी खड़े मुस्करा रहे है।  
नारद जी -भगवन् सब ठीक हो गया। आप सीधे हॉट सीट पर जायेगे। अब पढ़ाई शुरू कर दें अगले हफ्ते से कार्यक्रम शुरू हो रहा है। विष्णु भगवान - उसकी चिंता नही है वो मैं देख लूँगा । 
(लक्ष्मी जी का प्रवेश)-  भगवन मैं आपके साथ जाऊँगी हम लोग जोड़े वाले ग्रुप में जाएंगें। 
विष्णु भगवान - जिदद् मत करिए भाग्यवान पृथ्वी लोक आप नही जायेगीं । आप जो बोलेगीं मैं वहां से ले आऊँगा । लक्ष्मी जी -मुझे भी बिग बी से मिलना है।(पैर पटक कर जिद्द करती हैं)

विष्णु जी -भाग्यवान!(हाथ जोड़कर )जिद मत करिए मैं बिग बी की सुन्दर फोटो ओटोग्राफ वाली लेकर आऊँगा । लक्ष्मी जी - (दुखी मन से) ठीक है।  

करोड़पति सैट का दृश्य----

अमिताभ बच्चन---  
आप-विष्णु जी बैकुण्ठ नगर से आज हमारे सामने हॉट सीट पर बैठे हैं। विष्णु जी आपने अपनी वीडियो फिल्म लेने से इन्कार कर दिया है। उसका राज क्या है? आप ही अपने बारे में हमारे दर्शकों को कुछ  बताएं। 
विष्णु जी - मैं विष्णु बैकुण्ठ नगर का रहने वाला हूँ। मेरा परिवार बहुत बड़ा है। मैं मानव जीवन की ही सेवा कर रहा हूँ और यह मेरा सौभाग्य है कि आज मैं आपके (बिग बी) साथ हूँ। आज मुझे लग रहा है कि मेरा जीवन सफल हो गया । 
अमिताभ बच्चन--धन्यवाद! आपके शब्दों ने मुझे बहुत छोटा कर दिया है ।अच्छा ये बताइए 
  विष्णु जी आप अपने साथ किसे लाए हैं - विष्णु जी मुड़कर देखते हुए जैसे ही नारद जी का नाम लेने जाते है कि नारद जी के बगल में लक्ष्मी जी को देखकर लाल- पीले हो जाते हैं और उन्हें आंखें दिखाते  हैं पर उसी समय वहीं से लक्ष्मी जी क्षमा मांगते हुए उन्हें देखती है,तो भगवन कुछ नही कर पाते और अपनी पत्नी  व नारद जी का परिचय कराते हैं। 

अमिताभ बच्चन - धन्यवाद ! तो विष्णु जी चलिए खेलते हैं कौन बनेगा करोड़पति । मैं सबसे पहले आपको नियमों से अवगत करा देता हूँ। विष्णु जी -( सिर हिलाकर) ठीक है।  अमिताभ बच्चन- ये आपके लिए पहला प्रश्न-इस लाइन पूरा करें- भैंस के आगे---- ----
(बिग बी स्क्रीन देखकर हक्के- बक्के हो जाते है क्योंकि प्रश्न पूछने से पहले ही उनका जबाब आ जाता है) अमिताभ बच्चन - अपनी आंखे मलते हुए ये क्या और वे सामने बैठे विष्णु जी को देखते हैं।  
(तभी विष्णु जी को एहसास हो जाता है और वह उत्तर गायब कर देते हैं।)

तब तक अमिताभ जी भी संभल जाते हैं  और प्रश्न पढ़ते हैं। ये प्रश्न-उत्तर का सिलसिला चलते चलते आखिरी प्रश्न पर पहुँच जाता है। हैरानी की बात ये बात ये है कि अभी तक उन्होंने कोई लाइफलाइन नही ली है। 
अमिताभ जी - ये पहले व्यक्ति है  इस कार्यक्रम के और मैं तो कहूँगा इस करोड़पति के मंच पर जिन्होंने एक भी लाइफ लाइन अभी तक नही ली और बहुत सोच समझकर उत्तर दे रहे हैं । 
(अब तक बिग बी भी कुछ- कुछ समझ रहे है इस माजरे को ) और बड़े ध्यान से सामने बैठे विष्णु जी को देख रहे है। उधर लक्ष्मी जी तो बस बिग बी को ही देखी जा रही है। उन्हें प्रश्नोत्तर पर कोई दिलचस्पी नही है,क्योंकि जब बीच-बीच में नारद जी उनकी तरफ देखकर भगवान की तारीफ करते है तो वह उन्हें ऐसे देखती हैं ,जैसे उन्हें उनसे कोई  मतलब नही है।

   आइएआपको उन देव  के बारे में भी जानकारी दे दें। जो 10 उम्मीदवारों मे बैठै हुए ये सब देख रहे है। बस बीच- बीच में नारद जी को घूर लेते है जैसे कह रहे हो कि चलो ऊपर चलकर देखूँगा।

अमिताभ -विष्णु जी  ये आपके लिए अंतिम प्रश्न,बहुत सम्भल कर उत्तर दीजिएगा - महाभारत में झील के किनारे यक्ष बनकर किसने युधिष्ठर से प्रश्न पूछे थे? विष्णु जी -(कुछ सोचते हुए) धर्मराज । 
 अमिताभ उत्साहित होकर और....... 
और आप -10 करोड़पति हो गए। बधाई हो और विष्णु जी के गले लगते हैं। गले मिलते ही विष्णु जी को लगता है जैसे तारनहार आज खुद ही तर गया हो वह भाव विभोर होकर बिग बी को बस इतना कहते हैं-' ऐसे ही खुशियाँ देते रहे।' तभी अमिताभ उनके कान में कुछ कहते हैं। जिसे सुनकर विष्णु जी चकित रह जाते हैं और कहते हैं कि आपको सब मालूम है!
 अमिताभ अपने ही अंदाज से सिर हिला देते हैं। 
भगवन उनको मंद मुस्कान सेआशीर्वाद देते हैं और कहते हैं कि मैं  ये जीती हुई रकम  यहाँ की मोदी सरकार को 'अच्छे कामों' की लिए  देता हूँ। जिसे सुनकर सब दर्शक प्रसन्नता से  
झूम उठते है।।
 विष्णु जी मुड़कर लक्ष्मी जी को देखना चाहते है लेकिन वह उन्हें दिखती नहीं है वह विचलित हो जाते है तभी उनकी निगाह सामने पड़ती है जिसे देखकर वह  हैरान रह जाते हैं । लक्ष्मी जी अमिताभ बच्चन के साथ खूब हंस- हंस कर बात कर रही है और नारद जी उनके पीछे खड़े उसका आनन्द ले रहे हैं। 
 इधर उन देव को विष्णु जी देखकर हाथों के इशारों से आल दी बेस्ट कहते हैं और स्वर्ग लोक को चल देते हैं। 

Sunday, November 23, 2014

Education (कव्वाली)

ये आजकल की एजुकेशन ने जीना दुशवार किया
जब हम छोटे बच्चे थे,
घर में ही ये प्रारंभ हुआ,
मम्मी बोली A से एपल,
पापा ने B से बॉल कहा,
चाची भी चुप नहीं बैठी ,
उन्होंने C का  ज्ञान दिया,
बोली C से होती बिल्ली,
Dसे Donkey का ज्ञान हुआ
इस A B C D के चक्कर में,
सुनहरा बचपन बीत गयाl
ये आजकल की ...........l
तीन बरस के होते ही,
विद्यालय को प्रस्थान किया,
और वहाँ क्या था ?
अनुशासन ही अनुशासन था ,
आगे पीछे अनुशासन था,
मम्मी भी चुप नहीं बैठी,
घर में अनुशासन लगा दिया ,
फिर क्या था ?
स्कूल में अनुशासन था,
घर में भी अनुशासन था,
इस अनुशासन के चक्कर में
जीना हमको दुशवार हुआ
ये आजकल की ..........l
पढ़ते -लिखते,लिखते- पढ़ते,
खेलों को हमने त्याग दिया,
और क्या किया ?
मास्टर जी के घर में जाकर
विज्ञान का Lesson याद कियाl
हिन्दी, इंग्लिश, इतिहास ,गणित,
विज्ञान ने बस्ता जाम किया
भारी किताबें पढ़-पढ़कर
आँखों पे चश्मा सजा लिया
ये आजकल की ...….......l
दिल खोल के सारा हमने अपना
आपके सामने रख दिया,
जो-जो हमने अबतक झेला
वो सारा हमने बता दिया l
हे!बच्चों के अभिभावक गण
तुम ही अब कुछ उद्धार करो
खेलें कूदे देखें TV
और साथ में लैपटौप पास रहेl
करते विनती तुमसे इतनी
थोड़ी-सी help किया करो,
जब स्कूल से होमवर्क मिले
उसको घर में कर दिया करो l
ये आजकल की एजुकेशन ने जीना दुशवार किया l
      ***********************

Tuesday, November 11, 2014

Nursery Rhymes For My Granddaughter Saanvi

चिड़िया - चीं चीं चीं चीं चिड़िया बोली  चीं चीं ,
              फुर्र से वो उड़ जाती ढ़ूँढ़ के दाना लाती l
             मेरे बच्चों प्यारे  बच्चों , देखो में क्या लाई ,
           भूख लगी है बड़ी जोर से झटपट खाना खा लो l
          चीं चीं  ..…................................l

Black Sheep- Baa Baa Black sheep
                     How are you ?
                Can you give me,
             Soft- soft  wool.
        With the soft- soft wool,
      Mammy makes me suit .
     That I will wear ,
       In my school .
  Baa Baa Black Sheep
     How are you ?

गुड़िया -   मेरी गुड़िया गोल - मटोल
       खाती हरदम रोटी गोल,
     लड्डू पेड़ा मुझे खिलाती ,
  दूध मलाई खुद खा  जाती l

लोरी-   दादी  लोरी सुना दो मुझको , नींद नहीं आती है l
         मीठे- मीठे सपने बुनने को, ठपकी देदो तुम दादी l
       चाँद- सितारों पर जाकर मैं, परियों से मिलकर आऊँ l
        प्यारे- प्यारे खेल खिलौनें , सारे उनसे ले आऊँ ll

  पायल-  मेरी पायल बोल रही है, छम-छम-छम-छम-छम-छम-छम l
           ढोलक ताल मिला रही है , ढम-ढम-ढम-ढम-ढम-ढम-ढम l
          मम्मी  आकर पूछ रही हैं, ये क्या है छम-छम-छम-छम l
      मैं बोली  मैं नाच रही हूँ , छम- छमा- छम, छम-छम-छम l

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Monday, November 10, 2014

चौराहे की प्रतिमाएँ

'चौराहे की प्रतिमाएँ ' शीर्षक को पढ़ते ही हमारा ध्यान उस स्थान पर पहुँच जाता है, जहाँ किसी न किसी महान् व्यक्ति की प्रतिमा स्थापित है l विश्व भर में अनगिनत चौराहे हैं, जहाँ किसी न किसी महान् व्यक्ति की प्रतिमा स्थापित है l प्रतिमा की स्थापना मात्र से ही उन चौराहों की महत्त्वता बढ़ जाती है,साथ ही उनका नाम भी उसी व्यक्ति विशेष के नाम पर रख दिया जाता है जैसे- नेहरू चौक, गांधी पुतला चौक आदि l इसी प्रकार जिस दिशा में उस प्रतिमा मुँह होता है, उस मार्ग को भी उसी नाम से जाना जाता है जैसे- सुभाष मार्ग, शास्त्री मार्ग आदि l

पाठक गण इस लेख को पढ़कर यह अवश्य सोचेगें कि मैंने यह शीर्षक ही क्यों चुना? पहले मैं भी उन प्रतिमाओं को साधारण दृष्टिकोण से ही देखती थी,किन्तु जब मैंने उन प्रतिमाओं की दुर्दशा की कल्पना व अनुभूति की तो लगा कि यह कोई साधारण विषय नहीं है l 'प्रतिमा' हम किसी को स्मरण करने के लिए स्थापित करते हैं l जिससे की आगे की पीढ़ी भी उस व्यक्ति को जान ले कि यह प्रतिमा जरूर किसी महान् पुरुष की है, क्योंकि हमलोग किसी साधारण व्यक्ति की प्रतिमा चौराहे पर नहीं लगाते l भगवान की प्रतिमा को भी हमलोग स्मरण करने के लिए मंदिर में स्थापित करते हैंl  परन्तु आजतक मुझे यह बात समझ में नही आई कि यह प्रतिमाएं चौराहे पर ही क्यों स्थापित की जाती हैं क्या उनके लिए कोई और स्थान उचित नहीं हैl पर हाँ अभी किसी - किसी शहर में पार्क में,झीले के बीच या फिर किसी पहाड़ पर उन्हें स्थान मिला है l

यदि हम गौर करें तो पाते हैं कि प्रतिमा की स्थापना के दिन तो उस मूर्ति को पूर्ण रूप से सुसज्जित कराया जाता है , पर बाद में तो उस पर चाहे धूल पड़े, चाहे पानी,चाहे पक्षी बीट कर जाएँ , कोई पोंछने तक नही आता l प्रत्येक आदमी जो उस मार्ग से गुजरता है, देखता जरूर है पर उसकी सफाई कोई नहीं करता क्योंकि यह काम तो उनलोगों का है जिन्होंने स्थापना कराई है, और वही देखभाल भी करेगें l देखभाल पर ध्यान आया कि वह देखभाल अवश्य करते हैं, पर तब जब उस महान् व्यक्ति की जन्मतिथि हो या फिर पुण्यतिथि l उसके बाद किसी की जिम्मेदारी नहीं है कि उनकी देखभाल करें l
 कभी आप यह कल्पना करके देखिए कि जिन व्यक्तियों ने अपना पूरा जीवन देश के लिए अर्पण कर दिया , वह आज भी प्रतिमा के रूप में चौराहे पर खडे़ हो देश की सड़कों का मार्ग दर्शन करा रहे हैं, चौराहे पर खडे़ traffic police का काम कर रहे हैं l यह कितना कटु सत्य है l आजकल तो उन चौराहों पर शानदार राजनीतिज्ञ पार्टियों के भाषण , कविसम्मेलन तथा हड़तालों का आयोजन होता हैl उस समय जरूर उस मूर्ति को देखकर लोग उस महान् पुरुष को याद कर लेते हैं l शायद ही कोई महान् व्यक्ति इससे वंचित हो जिसकी प्रतिमा किसी चौराहे पर न लगी हो l
 आधुनिक महान् नेता, देश सुधारक व समाजसेवी  उन प्रतिमाओं,को देखकर एक बार जरूर प्रसन्न होकर अपना सीना फुला लेते होगें कि भविष्य में किसी चौराहे को उनकी प्रतिमा सुशोभित करेगी l कुछ नेता तो इतना सब्र भी नहीं कर पा रहे हैं और उन्होने अपने जीतेजी ही अपनी प्रतिमा स्थापित करा दी है, लेकिन उनको उस दुर्दशा का अंदाज़ नहीं है, जो इन मूर्तियों की होती है l जाड़े में कड़कड़ाती सर्दी में वह ठिठुर जाती हैं, गरमी में गर्म हवा से काँप जाती हैं तथा जब बरसात में ओलों की बौछार होती है,तो अपना दिल थाम लेती हैं और ये जरूर अनुभव करती होगी कि काश प्रतिमा स्थापित करने वालों को कभी इस पीड़ा की अनुभूति नहीं हुई क्योंकि अगर हुई होती तो जरूर वह एक छतरी लगवा देते l पर शायद यह विचार उन्हें तब ही आएगा जब वह भी इसी रूप में खड़े होगें व इन कष्टों को झेलेंगेl यह मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि आज जो भी प्रतिमा स्थापित की जाती है उसके पीछे किसी न किसी महान् नेता का हाथ जरूर होता है l अगर आज वह ये मूर्ति स्थापित करा रहे हैं तो आने वाले कल में उनकी प्रतिमा भी कोई महान् नेता जरूर स्थापित कराएगा l यहाँ यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या मूर्ति में भी जान होती है? इस संदर्भ में  मैं यही कह सकती हूँ कि आप उसको महसूस और  उसकी कल्पना तो करें , उत्तर मिल जाएगा l

     यदि मैं प्रतिमा को स्थापित करने वालों के स्थान पर होती तो उनके लिए एक उचित स्थान व छत्रछाया का प्रबन्ध जरूर करती l अगर ऐसा नहीं कर पाती तो प्रतिमा को स्थापित करने के बारे में कभी नहीं सोचती l
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Tuesday, October 28, 2014

Passing the Parcel

कल महिला क्लब में प्रोग्राम था उस में तरह-तरह के खेलों का भी आयोजन थाl उसमें सबसे रोचक खेल था ,Passing the parcel l संगीत के साथ एक बंद पैकिट सबके हाथों से गुजर रहा था और जिस के पास रुकता उस महिला को उसमें लिखा कार्य करना पड़ता l मैं भी खेल रही थी और साथ-साथ सबकी प्रतिक्रिया भी देख रही थी कि महिलाएं किस तरह पैकिट को आगे बढ़ा रही थींl कोई झटके के साथ तो कोई उछालते हुए आगे बढ़ा देती ,पर किसी पर तो रुकता और फिर संगीत के साथ आगे बढ़ जाता l सबने खूब आनंद लेकर खेला l 

आज मैं बैठी- बैठी यह सोच रही थी कि इस खेल को तो हर व्यक्ति रोज खेल रहा हैl आप सोचेगे कैसे? इस संदर्भ में एक वाकया बता रही हूँ , कुछ दिनों पहले मेरे यहाँ मेरी चचेरी नन्द आईं l वह सबके लिए कुछ न कुछ लाई मेेरे लिए भी एक सुंदर साड़ी लाई जिसे देखकर मैं बहुत खुश हुईl मैंने उन्हें धन्यवाद दिया l उनके जाने के बाद मैंने अपनी बेटी से कहा कि साड़ी को अलमारी में रखदो l उसको देखते ही बेटी बोली , मम्मी ये तो अापने जूही चाची को उनके जन्मदिन पर दी थीl तब मैंने ध्यान से देखा तो लगा कि बेटी ठीक बोल रही हैl ये था एक उदाहरण l साड़ी ही नहीं हमलोग बहुत से सामान जो तोहफे में मिलते हैं उसका प्रयोग इस तरह करते हैं, वैसे इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि हम ऐसा इसलिए करते हैं जब हमें लगता है कि हम उस को प्रयोग में नहीं लाएगे और इस तरह उसका सुदुपयोग करते हैंl साधारण व्यक्ति ही नहीं , अच्छे समर्थ लोग भी करते हैं यहाँ तक की आजकल बच्चे भी जन्मदिन के gifts खोलते वक्त जो उनके पास है या उन्हें पसन्द नहीं आया तो यह कह कर मम्मी के पास रखवा देते हैं कि मम्मी अगले महिने मेरे दोस्त के जन्मदिन पर उसे दे देगे, पर मम्मी आप इसके बदले में मुझे मेरे पसन्द का एक gift दिला देना l 

कभी -कभी तो हमलोग उपहार खोलते भी नहीं हैं केवल बाहर से ही अंदाज लगा कर दूसरे को उपहार के रूप दे देते हैं l इस संदर्भ में भी एक बड़ा दिलचस्प वाकया है,मैं अपनी सहेली के यहाँ बैठी थी तब ही उसके पास उसकी नन्द का दुबई से फोन आया वह पूछ रही थीं कि उनके द्वारा भेजा gift ( कान के सोने के झुमके ) उन्हें कैसा लगा, उस समय तो उसने यह कह कर कि बहुत अच्छा लगा फोन काट दिया पर बाद में उसने मुझे बताया कि उसने बिना देखे ही वह gift किसी को दे दिया और अब पछता रही है कि जिस को वह दिया था वह उसके लायक नहीं थी़ पर अब क्या करे जब चिड़िया चुग गई खेत l ऐसा भी होता है कभी-कभी l ऐसा भारत में ही नहीं विदेशों में भी होता है इसमें अमेरिका एक हाथ आगे ही हैl अभी कुछ दिनों पहले मेरी मामी जी अमेरिका से आईंथीं उन्होनें बताया कि इस तरह gift के सामान वहाँ गैरेज़ सेल में लोग दूसरों को बेच देते हैं l वहाँ गैरेज़ सेल का बहुत प्रचलन है ,लोग अपने पुराने सामान को अपने गैरेज़ में सजा कर दूसरों को रियात दामों में बेच देते हैं और साथ में एेसे उपहारों को भी आगे बढ़ा देते हैं l

यहाँ मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि यह सब हमलोग किसी भावना के तहत करते है जिससे अपने को एक संतोष मिलता है,लेकिन ये 'भावना' शब्द के भी कई रूप हैंl कोई मन से तो कोई दिखावे से या कोई सम्बन्धों के दबाओ में करते हैं l यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगी कि ये हमेशा नहीं पर आमतौर पर हमलोग करते हैंl जिसका अंजाम मेरे जैसा किसी का भी हो सकता हैं,कि कब अपनी ही gift कई पड़ाव पार करते हुए वापस अपने पास आ जाए और एक बार फिर से दूसरी पारी के लिए तैयार हो जाए l

यहाँ एक सोच मेरी और  जागृत हुई कि उस वस्तु विशेष पर क्या गुजरती है जो तरस रही है कि कोई उसका इस्तेमाल करेl कभी- कभी महिनों और सालों लग जाते हैं उस हाथ तक पहुँचने में जहाँ उसका इस्तेमाल हो पाता है l मेरा यहाँ यही मानना है कि उपहार एक स्नेह सूचक है तो उसका चयन करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाले के लिए कितना उपयुक्त हैl कम मूल्य की छोटी चीज भी कभी-कभी बहुत उपयोगी होती हैl भावनाओं में बहकर उपहारों का चयन न करके अगर समय  और उपयोगिता का ध्यान रखते हुए करें तो मुझे पूरी उम्मीद है कि हमलोग  इस Passing the Parcel खेल से बच जाएंगे, जो हम व्यवाहारिक जीवन में खेल रहे हैं l इस खेल को मनोरंजन के लिए ही खेलें और जीवन में खुश रहें l

So start the game ' Passing the parcel' for fun only and enjoy your life.